Sam Maneksha-sam bahadur
कोन थे सैम बहादुर?
भारतीय सेना इतिहास में सबसे प्रसिद्ध शख्सियत में से एक है सैम बहादुर (Sam Maneksha-sam bahadur ) उनकी जिंदगी पर बनी फिल्म सैम बहादुर सिनेमाघर में रिलीज हो चुकी है। सैम बहादुर(1914-2008) का पूरा नाम सैम हारमुसजी फेमजी जमशेदजी मानेकशॉ है। सैम बहादुर फिल्ड मार्शल का पद धारण करने वाले पहले भारतीय सैन्य अधिकारी थे। 1971 के भारत पाक युद्ध के दोरान भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष भी थे।
प्रारम्भिक जीवन
सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को पंजाब के अमृतसर जिले में एक पारसी परिवार मे हुआ था।उनकी माता हिला नी मेहता ग्रहणी व उनके पिता हार्मसजी मानेक शॉ एक डॉक्टर थे। हार्मसजी मानेक के चार पुत्र व दो पुत्रीया थी। जिसमे सैम मानेकशॉ पांचवे थे। बचपन से ही सैम बहुत शरारती और जोशीले थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब में की और फिर शेरवुड कॉलेज नैनीताल चले गए। 1929 में 15 साल की उम्र में उन्होंने जूनियर कैंब्रिज सर्टिफिकेट कैंब्रिज इंटरनेशनल एग्जामिनेशन द्वारा विकसित अंग्रेजी भाषा का पाठ्यक्रम लेकर कॉलेज छोड़ दिया। वे अपनी चिकित्सीय अध्ययन करने के लिए लंदन जाना चाहते थे लेकिन उनकी उम्र कम होने के कारण उनके पिता ने उन्हें मना कर दिया। अपने पिता द्वारा उन्हें लंदन भेजने से इनकार किए जाने के विरोध में उन्होंने भारतीय सेवा अकादमी की प्रवेश परीक्षा में बैठे। 1 अक्टूबर 1932 को वह प्रतियोगिता के माध्यम से चुने जाने वाले 15 कैडेटो में से एक थे।
मिलिट्री करियर
उनका मिलिट्री करियर द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध तक रहा जो लगभग चार दशक का था उन्होंने भारतीय सेना को सभी युद्ध मे निर्णायक जीत दिलाई। आजाद भारत में सैम मानेकशॉ (Sam Maneksha-sam bahadur कुछ समय तक 16वीं पंजाब रेजीमेंट में रहे, बाद में लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में पांचवी गोरखा राइफल में ट्रांसफर किया गया, गोरखा सैनिकों के साथ ज्यादा समय तक काम नहीं कर पाए क्योंकि उनको 1947-48 के कश्मिर युद्ध के दोरान सेना मुख्यालय में जिम्मेदारी संभालने के लिए भेज दिया गया था।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उनके आंतो, जिगर और गुर्दों में लगी थी सात गोलियां
उनकी जीवनी लिखने वाले मेजर जनरल वीके सिंह ने उनकी जीवनी के में लिखा है कि सैम (Sam Maneksha-sam bahadur) को सबसे पहले शोहरत मिली साल 1942 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान मिली। युद्ध के दोरान बर्मा के मोर्चे पर उनको 7 गोलियां उनके आंतो,जिगर ओर गुर्दो मे उतार दी थी । वीके सिंह ने उनकी जीवनी में लिखा है कि उनके कमांडर मेजर जनरल कोवान ने अपना मिलिट्री क्रॉस उतार कर सैम बहादुर के सीने में इसलिए लगा दिया था क्यूंकि मृत फौजी को मिलिट्री क्रॉस नहीं दिया जाता था।
डॉक्टर और उनके इलाज के दौरान में शरीर में घुसी गोलियां निकाल और उनकी आंतो का क्षतिग्रस्त हिस्सा काटकर निकाल दिया गया था आश्चर्यजनक रूप से वह बच गए थे ।
जब इंदिरा गांधी से भिड गए थे सैम (Sam Maneksha-sam bahadur)
1962 में चीन से युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और रक्षा मंत्री यशवंत राव चौहान सीमा क्षेत्र के दौरे पर थे प्रधानमंत्री नेहरू जी के साथ उनकी बेटी इंदिरा गांधी भी थी एक बार सैम (Sam Maneksha-sam bahadur) ने इंदिरा से कहा था कि आप ऑपरेशन रूम में नहीं घुस सकती क्योंकि आपने गोपनीयता की शपथ नहीं ली है इंदिरा गांधी जी को इस बात का बुरा भी लगा था लेकिन इस बात के चलते उनके रिश्ते कभी खराब नहीं हुए ।
एक पारसी परिवार में हुआ था
Books written on Sam Maneksha-sam bahadur
field marshal sam manekshaw written by Hanadi falki
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